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Bujhi mombati

*!! बुझी मोमबत्ती !!* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ एक पिता अपनी चार वर्षीय बेटी मिनी से बहुत प्रेम करता था। ऑफिस से लौटते वक़्त वह रोज़ उसके लिए तरह-तरह के खिलौने और खाने-पीने की चीजें लाता था। बेटी भी अपने पिता से बहुत लगाव रखती थी और हमेशा अपनी तोतली आवाज़ में पापा-पापा कह कर पुकारा करती थी। दिन अच्छे बीत रहे थे की अचानक एक दिन मिनी को बहुत तेज बुखार हुआ, सभी घबरा गए, वे दौड़े भागे डॉक्टर के पास गए, पर वहां ले जाते-ले जाते मिनी की मृत्यु हो गयी। परिवार पर तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा और पिता की हालत तो मृत व्यक्ति के समान हो गयी। मिनी के जाने के हफ़्तों बाद भी वे ना किसी से बोलते ना बात करते… बस रोते ही रहते। यहाँ तक की उन्होंने ऑफिस जाना भी छोड़ दिया और घर से निकलना भी बंद कर दिया। आस-पड़ोस के लोगों और नाते-रिश्तेदारों ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर वे किसी की ना सुनते, उनके मुख से बस एक ही शब्द निकलता… मिनी..!! एक दिन ऐसे ही मिनी के बारे में सोचते-सोचते उनकी आँख लग गयी और उन्हें एक स्वप्न आया। उन्होंने देखा कि स्वर्ग में सैकड़ों बच्चियां परी बन कर घूम रही हैं, सभ
1. পতঙ্গের দেহে কোন প্রোটিন পাওয়া যায় ? উঃ কাইটিন 2. শ্বেত রক্তকণিকা কবে আবিষ্কৃত হয় ? উঃ ১৯২২ 3. রামমোহন রায় কে ‘ভারত পথিক’ বলে কে সম্মান জানিয়েছেন ? উঃ রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর 4. বাংলা গেজেট পএিকার সম্পাদক কে ? উঃ গঙ্গাকিশোর ভট্টাচার্যের 5. নিখিল ভারত ট্রেড ইউনিয়ন কংগ্রেসের প্রথম অধিবেশনে কে সভাপতিত্ব করেন ? উঃ লালা লাজপত রায় 6. ভারতের বিপ্লববাদের জননী নামে খ্যাত ছিলেন ? উঃ মাদাম কামা 7. নিখিল ভারত হোমরুল লীগের প্রতিষ্ঠাতা কে ? উঃ অ্যানি বেসান্ত 8. বাঘাযতীন নামে কে পরিচিত ছিলেন ? উঃ যতীন্দ্রনাথ মুখোপাধ্যায়

*!! बुझी मोमबत्ती !!*

 *!! बुझी मोमबत्ती !!* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ एक पिता अपनी चार वर्षीय बेटी मिनी से बहुत प्रेम करता था। ऑफिस से लौटते वक़्त वह रोज़ उसके लिए तरह-तरह के खिलौने और खाने-पीने की चीजें लाता था। बेटी भी अपने पिता से बहुत लगाव रखती थी और हमेशा अपनी तोतली आवाज़ में पापा-पापा कह कर पुकारा करती थी। दिन अच्छे बीत रहे थे की अचानक एक दिन मिनी को बहुत तेज बुखार हुआ, सभी घबरा गए, वे दौड़े भागे डॉक्टर के पास गए, पर वहां ले जाते-ले जाते मिनी की मृत्यु हो गयी। परिवार पर तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा और पिता की हालत तो मृत व्यक्ति के समान हो गयी। मिनी के जाने के हफ़्तों बाद भी वे ना किसी से बोलते ना बात करते… बस रोते ही रहते। यहाँ तक की उन्होंने ऑफिस जाना भी छोड़ दिया और घर से निकलना भी बंद कर दिया। आस-पड़ोस के लोगों और नाते-रिश्तेदारों ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर वे किसी की ना सुनते, उनके मुख से बस एक ही शब्द निकलता… मिनी..!! एक दिन ऐसे ही मिनी के बारे में सोचते-सोचते उनकी आँख लग गयी और उन्हें एक स्वप्न आया। उन्होंने देखा कि स्वर्ग में सैकड़ों बच्चियां परी बन कर घूम रही हैं, सभी सफ़ेद पोशाकें पहने हु

*🌷 झूठा सुख 🌷*

 झूठा सुख   एक बार एक नदी में हाथी की लाश बही जा रही थी। एक कौए ने लाश देखी तो प्रसन्न हो उठा, तुरन्त उस पर आ बैठा। यथेष्ट मांस खाया, नदी का जल पिया।  उस लाश पर इधर- उधर फुदकते हुए कौए ने परम तृप्ति की डकार ली। वह सोचने लगा, अहा ! यह तो अत्यन्त सुन्दर यान है, यहाँ भोजन और जल की भी कमी नहीं। फिर इसे छोड़कर अन्यत्र क्यों भटकता फिरूँ ? कौआ नदी के साथ बहने वाली उस लाश के ऊपर कई दिनों तक रमता रहा। भूख लगने पर वह लाश को नोचकर खा लेता, प्यास लगने पर नदी का पानी पी लेता।  अगाध जलराशि, उसका तेज प्रवाह, किनारे पर दूर-दूर तक फैले प्रकृति के मनोहरी दृश्य-इन्हें देख- देखकर वह विभोर होता रहा। नदी एक दिन आखिर महासागर में मिली। वह मुदित थी कि उसे अपना गंतव्य प्राप्त हुआ। सागर से मिलना ही उसका चरम लक्ष्य था, किन्तु उस दिन लक्ष्यहीन कौए की तो बड़ी दुर्गति हो गई। चार दिन की मौज- मस्ती ने उसे ऐसी जगह ला पटका था, जहाँ उसके लिए न भोजन था, न पेयजल और न ही कोई आश्रय। सब ओर सीमाहीन अनंत खारी जल -राशि तरंगायित हो रही थी। कौआ थका-हारा और भूखा-प्यासा कुछ दिन तक तो चारों दिशाओं में पंख फटकारता रहा, अपनी छिछली और ट

মহাত্মা এবং ধোপা!!!

 0️⃣2️⃣❗0️⃣8️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣4️⃣ *♨️আজকের প্রেরণাদায়ক গল্প♨️*          , মহাত্মা এবং ধোপা!!! , এক মহাত্মা নদীর তীরে অবস্থিত একটি বড় পাথরের উপর বসে ছিলেন। একজন ধোপা সেখানে আসে এবং তীরে একমাত্র পাথর ছিল যেখানে সে প্রতিদিন কাপড় ধুতেন। মহাত্মাজীকে পাথরের উপর বসে থাকতে দেখে তিনি ভাবলেন- তিনি এখন উঠবেন, আমি কিছুক্ষণ অপেক্ষা করব এবং পরে আমার কাজ করব। এক ঘণ্টা গেল, দুই ঘণ্টা গেল, তবুও মহাত্মা উঠলেন না। তাই, ধোপা হাত গুটিয়ে বিনয়ের সাথে অনুরোধ করলেন, "মহাত্মান, এটা আমার কাপড় ধোয়ার জায়গা, আপনি অন্য কোথাও বসলে আমি আমার কাজ শেষ করব।" মহাত্মাজী সেখান থেকে উঠে একটু দূরে গিয়ে বসলেন। ধোপা কাপড় ধোয়া শুরু করে, এবং কাপড় ধোয়ার প্রক্রিয়ায়, মহাত্মাজির উপর কিছু ছিটা পড়তে শুরু করে। মহাত্মাজী রেগে গিয়ে ধোপাকে গালি দিতে লাগলেন। শান্তি না পেয়ে পাশে রাখা ধোপাদের লাঠিটা তুলে নিয়ে তাকে মারতে থাকে। উপর থেকে সাপকে নরম মনে হলেও লেজ চাপলেই এর বাস্তবতা প্রকাশ পায়। মহাত্মাকে রাগান্বিত দেখে ধোপা ভাবলো আমি নিশ্চয়ই কোনো অপরাধ করেছি। তাই তিনি হাত গুটিয়ে মহাত্মার কাছে ক্ষমা চাইতে লাগলেন। মহাত্মা বললে

*!! महात्मा और धोबी !!*

 0️⃣2️⃣❗0️⃣8️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣4️⃣ *♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*          *!! महात्मा और धोबी !!* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ एक नदी तट पर स्थित बड़ी सी शिला पर एक महात्मा बैठे हुए थे। वहाँ एक धोबी आता है किनारे पर वही मात्र शिला थी जहां वह रोज कपड़े धोता था। उसने शिला पर महात्मा जी को बैठे देखा तो सोचा- अभी उठ जाएंगे, थोड़ा इन्तजार कर लेता हूँ अपना काम बाद में कर लूंगा। एक घंटा हुआ, दो घंटे हुए फिर भी महात्मा उठे नहीं ! अतः धोबी नें हाथ जोड़कर विनय पूर्वक निवेदन किया कि महात्मन् यह मेरे कपड़े धोने का स्थान है आप कहीं अन्यत्र बिराजें तो मै अपना कार्य निपटा लूं। महात्मा जी वहाँ से उठकर थोड़ी दूर जाकर बैठ गए। धोबी नें कपड़े धोने शुरू किए, पछाड़ पछाड़ कर कपड़े धोने की क्रिया में कुछ छींटे उछल कर महात्मा जी पर गिरने लगे। महात्मा जी को क्रोध आया, वे धोबी को गालियाँ देने लगे। उससे भी शान्ति न मिली तो पास रखा धोबी का डंडा उठाकर उसे ही मारने लगे। सांप उपर से कोमल मुलायम दिखता है किन्तु पूंछ दबने पर ही असलियत की पहचान होती है। महात्मा को क्रोधित देख धोबी ने सोचा अवश्य ही मुझ से कोई अपराध हुआ है। अतः वह हाथ जोड़

*🌷 कर्ज 🌷*

                    2️⃣0️⃣2️⃣4️⃣        *♨️ आज की प्रेरणा प्रसंग ♨️*                      *🌷 कर्ज 🌷* विवाह के दो वर्ष हुए थे जब सुहानी गर्भवती होने पर अपने घर राजस्थान जा रही थी।पति शहर से बाहर थे, जिस रिश्ते के भाई को स्टेशन से ट्रेन मे बिठाने को कहा था वो लेट होती ट्रेन की वजह से रुकने में मूड में नहीं था इसीलिए समान सहित प्लेटफॉर्म पर बनी बेंच पर बिठा कर चला गया। गाड़ी को पांचवे प्लेटफार्म पर आना था। गर्भवती सुहानी को सातवाँ माह चल रहा था. सामान अधिक होने से एक कुली से बात कर ली। बेहद दुबला पतला बुजुर्ग, पेट पालने की विवशता उसकी आँखों में थी। एक याचना के साथ  सामान उठाने को आतुर। सुहानी ने उसे पंद्रह रुपये में तय कर लिया और टेक लगा कर बैठ गई,तकरीबन डेढ़ घंटे बाद गाडी आने की घोषणा हुई लेकिन वो बुजुर्ग कुली कहीं नहीं दिखा। कोई दूसरा कुली भी खाली नज़र नही आ रहा था, ट्रेन छूटने पर वापस घर जाना भी संभव नही था। रात के साढ़े बारह बज चुके थे, सुहानी का मन घबराने लगा, तभी वो बुजुर्ग दूर से भाग कर आता हुआ दिखाई दिया, बोला चिंता न करो बिटिया हम चढ़ा देंगे गाडी में, भागने से उसकी साँस फूल रही थी।